वर्किंग कमिटी का पहली बार गठन 16.01.1940 में हुआ, जिसमें 21 सदस्य नियुक्त हुए। सभा की यह पहली कार्यसमिति थी जिसके सदस्य थे –
पुस्तक संगरक्षक समिति के सात सदस्य चुने गए –
19.10.1946 की बैठक में एक समिति का गठन किया गया जिसे यह दायित्व सौंपा गया कि तेरापंथी समुदाय के हितों की रक्षा के लिए संविधान निर्मात्री सभा का गठन करे। तदनुसार समिति का गठन किया गया और उसने संघ के नियम आदि का निर्माण किया।
उसके बाद सं 1965 में नियमावली की संशोधित ‘मेमोरंडम ऑफ एसोसिएशन’ की प्रति प्रस्तुत की गई जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। फिर सोसायटीज एक्ट के अनुसार संशोधित नियमावली रजिस्ट्रार से स्वीकृत हो गई।
02.03.1950 की कार्यकारिणी की मीटिंग 3, पोर्चुगीज चर्च स्ट्रीट में हुई। सभा के अपने निजी भवन में यह पहली मीटिंग हुई। सभा स्थापित होने के सैंतीस वर्ष बाद कार्यकर्ताओं का स्वप्न साकार हुआ।
13.11.1955 की मीटिंग में लिए गए निर्णय के अनुसार आचार्य तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में तथा मुनिश्री नथमलजी की देखरेख में हो रहे आगमों के अनुवाद को महासभा द्वारा प्रकाशित करने का कार्य प्रारम्भ हुआ।
सन् 1965 में सोसायटीज एक्ट के अनुसार नियमावली (‘मेमोरंडम ऑफ एसोसिएशन’) को संशोधित किया गया जिसे रजिस्ट्रार द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई। इसके साथ ही मेम्बरशिप फॉर्म भी छपाया गया। मेमोरंडम को छपाकर निःशुल्क सदस्यों को भेजा गया।
14.10.1965 की मीटिंग में महासभा के अंतर्गत महिला विभाग तत्काल खोलने का निर्णय लिया गया। इसकी संयोजिका श्रीमती फूलकुमारी सेठिया को चुना गया। महासभा के उद्देश्यों के अनुरूप इस विभाग को महिला जागरण का कार्य सौंपा गया।
29.06.1968 की मीटिंग में महासभा के अंतर्गत जैन विश्व भारती विभाग को खोलने की एक योजना बनायी गई।
उच्च न्यायालय के आदेशानुसार धरमचंदजी चौपड़ा की देखरेख में 27 नवम्बर 1978 को महासभा के पदाधिकारियों एवं सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों का चुनाव संपन्न हुआ। महामंत्री हंसराजजी सेठिया व कोषाध्यक्ष पन्नालाल सागरमल फर्म को बनाया गया।
30.03.1980 को भवन निर्माण हेतु उपसमिति का पुनर्गठन हुआ। खेमचंदजी सेठिया को संयोजक चुना गया। अध्यक्ष, मंत्री पदेन सदस्य थे, दो सदस्यों के चयन का भार संयोजक को दिया गया।
योगक्षेम वर्ष में ज्ञानशाला प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर, 18 जून से 24 जून 89 तक, कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर 5 नवम्बर से 11 नवम्बर 1989 तक लगाया गया। कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर के संयोजक के रूप में महेन्द्रजी कर्णावट को सर्वसम्मति से नियुक्त किया गया।
16.03.1991 की मीटिंग में यह निर्णय किया गया कि महासभा में प्रयुक्त प्रधानमंत्री शब्द कि जगह महामंत्री शब्द का प्रयोग किया जाएगा।
1988 में महासभा की स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर उसकी हीरक जयंती मनाई गई। कलकत्ता में कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी सम्वत् 2045 को 75वें वर्ष में प्रवेश के उपलक्ष में महासभा द्वारा आयोजित विशेष कार्यक्रम के आलावा छापर में मर्यादा महोत्सव के अवसर पर परमाराध्य आचार्यप्रवर श्री तुलसी की सन्निधि में महासभा की हीरक जयंती का एक विशाल एवं भव्य आयोजन हुआ।
योगक्षेम वर्ष में अनेक प्रकार के प्रशिक्षणों का क्रम चला। उनमें एक महत्वपूर्ण प्रशिक्षण था समाज के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना। प्रज्ञापर्व समारोह समिति द्वारा यह दायित्व महासभा को सौंपा गया।
महासभा ने 23 से 25 नवम्बर 1993 तक राजलदेसर में त्रिदिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया।
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