जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ एक मर्यादित, अनुशासित एवं सुसंगठित धर्मसंघ है। तेरापंथ के आद्य अनुशास्ता आचार्यश्री भिक्षु ने जिनवाणीयुक्त आगमों को आधार मानकर चारित्रिक विशुद्धि की नींव पर तेरापंथ का शिलान्यास किया। तेरापंथ की गौरवशाली आचार्य परंपरा ने अपने साधनाबल, तपोबल और प्रज्ञाबल से अपने-अपने आचार्यकाल में सबल और युगानुरूप आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान कर धर्मसंघ को आध्यात्मिक ऊंचाई और तेजस्विता प्रदान की। तपःपूत आचार्यों की पावन छत्रछाया और अनुशासना में त्यागी, तपस्वी, तत्त्वज्ञ एवं प्रबुद्ध साधु-साध्वियों की लंबी शृंखला ने अपनी श्रम बूंदों से तेरापंथ के वटवृक्ष को अभिसिंचित किया। “एक गुरु और एक विधान” के पर्याय तेरापंथ धर्मसंघ की विकास यात्रा में श्रावक समाज की भूमिका भी महनीय रही है। संघ और संघपति के प्रति सर्वात्मना समर्पित, श्रावक समाज ने भी संघ की श्रीवृद्धि में अपने दूरदर्शी चिंतन और निष्ठायुक्त पुरुषार्थ से अपना अमूल्य योगदान दिया है। 28 अक्टूबर 1913 को जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा की स्थापना के साथ निष्ठाशील और सर्वात्मना समर्पित श्रावक समाज को संगठित रूप में विशिष्ट और संवैधानिक पहचान मिली।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा तेरापंथ समाज की ‘संस्था शिरोमणि’ , प्रतिनिधि संस्था एवं ‘मां’के रूप में विख्यात है। समाज की इस गौरवपूर्ण संस्था के द्वारा समाजोत्थान हेतु अनेकानेक आध्यात्मिक और सामाजिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। एक सदी से भी अधिक आयु वाली धर्मसंघ की इस सर्वाधिक प्राचीन संस्था ने समाज के योगक्षेम हेतु विकास के नए-नए क्षितिज उद्घाटित किए, अपने आयामों से समाज को नई पहचान दी और संघ व संघपति के प्रति सदा सर्वात्मना समर्पित रहकर धर्मसंघ की सुरक्षा और उन्नति में अपना निष्ठापूर्ण, उल्लेखनीय और अविस्मरणीय योगदान दिया। इन उपलब्धियों की शृंखला प्रलम्ब है, जिन्हें महासभा ने परम पूज्य आचार्यों के आशीर्वाद और अपने प्रबल पुरुषार्थ से प्राप्त किया।
तेरापंथ समाज के अष्टमाचार्य परम पूज्यश्री कालूगणी के युग में प्रसूत हुई महासभा को परम पूज्य गुरुदेव तुलसी और परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का कृपायुक्त वरदहस्त प्राप्त हुआ। वर्तमान में परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण की असीम कृपा और आशीर्वाद से युक्त छत्रछाया तथा उनके मार्गदर्शन में महासभा प्रगति के आकाश में द्रुतगति से प्रवर्धमान है।
देश-विदेश में फैली 628 तेरापंथी सभाओं तथा 127 तेरापंथी उपसभाओं की शीर्षस्थ संस्था के रूप में महासभा एक व्यापक संगठन का कुशल नेतृत्व और संचालन कर रही है। ज्ञानशाला, उपासकश्रेणी, तेरापंथ नेटवर्क, अहिंसा यात्रा प्रबंधन, महासभा आपके द्वार, संस्कार निर्माण शिविर, बेटी तेरापंथ की, तेरापंथ अप्रवासी भारतीय विभाग, तेरापंथ वरिष्ठ नागरिक विभाग, तेरापंथ कला एवं संस्कृति विभाग, तेरापंथ भवन निर्माण, पूज्यप्रवर की सेवा में रत शिविर कार्यालय, भिक्षु ग्रंथागार, तेरापंथ स्मारक सुरक्षा, आचार्य महाप्रज्ञ स्मारक स्थल, महाप्रज्ञ दर्शन म्यूजियम, विज्ञप्ति प्रकाशन, जैन भारती प्रकाशन, संबोधन-अलंकरण सम्मान आदि अनेकानेक महत्त्वपूर्ण आयामों के माध्यम से महासभा तेरापंथ धर्मसंघ की सुरक्षा, विकास और प्रभावना में अपना निष्ठापूर्ण और निष्पत्तिपूर्ण योगदान दे रही है।
देश-विदेश में फैली 620 तेरापंथी सभाओं का विशाल संगठन जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा का गौरव है। तेरापंथ धर्मसंघ की यशोगाथा को सर्वव्यापी बनाने व तेरापंथ समाज के योगक्षेम में तेरापंथी सभाओं का सजग, सक्रिय एवं समर्पित सहयोग महासभा को सदैव प्राप्त रहता है। तेरापंथी सभा अपने क्षेत्र की शीर्षस्थ, मुख्य दायित्वशील एवं स्थानीय स्तर पर धर्मसंघ का प्रतिनिधित्व करने वाली संघीय संस्था होती है। तेरापंथी सभाएं विश्व के कोने-कोने में फैले 60000 से अधिक तेरापंथी परिवारों से महासभा के संपर्क का माध्यम बनती है। स्थानीय तेरापंथी सभाओं के माध्यम से महासभा तेरापंथ समाज का स्थिति एवं अपेक्षाओं का आकलन कर उसके योगक्षेम का प्रयास करती है।
सामाजिक सुसंगठन की सुदृढ़ता महासभा का एक प्रमुख लक्ष्य है। प्रत्येक तेरापंथी परिवार समाज के संगठन से जुड़े, इस दृष्टि से महासभा द्वारा तेरापंथी उपसभा का गठन किया जाता है। इस प्रकल्प के अंतर्गत उन क्षेत्रों को जोड़ा जाता है, जहां चार से अधिक तेरापंथी परिवार रहते हैं और तेरापंथी सभा का गठन नहीं हुआ है। अपने क्षेत्र के सभी तेरापंथी परिवारों का प्रतिनिधित्व व सार-संभाल, क्षेत्र व आसपास में पधारने वाले साधु-साध्वियों, समणश्रेणी की अपेक्षानुसार सेवा, व्यवस्था व सार-संभाल, निकटतम तेरापंथी सभा से सम्पर्क, महासभा द्वारा प्राप्त निर्देशों की अनुपालना आदि उपसभा के दायित्व होते हैं। देशभर में 101 तेरापंथी उपसभाएं कार्यरत हैं। महासभा द्वारा उपसभा के द्विवर्षीय कार्यकाल के लिए एक संयोजक तथा अपेक्षानुसार एक अथवा दो सहसंयोजकों को नियुक्त किया जाता है।
चारित्रात्माओं, समणश्रेणी एवं मुमुक्षुश्रेणी की सीमित संख्या के कारण सुदूर क्षेत्रों में फैले श्रावक समाज की समय-समय पर आध्यात्मिक सार-संभाल हेतु आचार्यश्री तुलसी द्वारा 1992 से ‘उपासक श्रेणी’ का नया विकल्प समाज के सामने प्रस्तुत किया गया। विभिन्न क्षेत्रों की प्रार्थना पर पर्युषण पर्वाराधना करवाने की दृष्टि से इस श्रेणी के सैंकड़ों वर्ग प्रतिवर्ष प्रेषित किए जाते हैं, फलस्वरूप तत्रस्थ श्रावक समाज विशेष रूप से लाभान्वित होता है। इस श्रेणी के प्रारम्भ से ही इसकी संपूर्ण व्यवस्थाओं व विकास का दायित्व महासभा बखूबी निभा रही है।
महासभा द्वारा प्रतिवर्ष पूज्यप्रवर के पावन सान्निध्य में अष्टदिवसीय उपासक प्रशिक्षण शिविर, त्रिदिवसीय सेमिनार, स्थान-स्थान पर प्रशिक्षण कार्यशाला आदि का आयोजन भी किया जाता है। प्रशिक्षित उपासक-उपासिकाओं की संख्या वर्तमान में 692 है।
692 उपासक | 207 प्रवक्ता उपासक | 485 सहयोगी उपासक |
संपूर्ण तेरापंथ समाज के योगक्षेम एवं सामाजिक सार-संभाल का दायित्व महासभा का है। प्रत्येक तेरापंथी परिवार के धर्मसंघ से जुड़ाव व समग्र तेरापंथ समाज के योगक्षेम के उद्देश्य से महासभा द्वारा ‘तेरापंथ नेटवर्क’ का महत्त्वपूर्ण उपक्रम संचालित है, जिसमें देश-विदेश में प्रवासित समाज के प्रत्येक परिवार को जोड़ने का लक्ष्य है। इस महनीय योजना के अंतर्गत अब तक 2,00,000 से अधिक व्यक्तियों को ‘जैन तेरापंथ कार्ड’ वितरित किए जा चुके हैं। लगभग 60,000 तेरापंथी परिवारों का डाटा महासभा के रिकार्ड में उपलब्ध है। इस योजना के माध्यम से निर्मित मास्टर डेटाबेस के द्वारा तेरापंथ समाज को विभिन्न आध्यात्मिक और सामाजिक लाभ के साथ बिजनेश नेटवर्किंग, डिस्काउंट ऑफर्स, जॉब्स आदि अनेक आर्थिक लाभ भी प्राप्त हो रहे हैं। समाज का प्रत्येक सदस्य तेरापंथ नेटवर्क से जुड़कर स्वयं लाभ प्राप्त कर सकता है तथा अपनी विशेषज्ञता व क्षमता का लाभ समाज को भी दे सकता है। तेरापंथ नेटवर्क एप के माध्यम से इस योजना के कई महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
बी 2 बी मीटिंग्स, मोबाइल एप एवं सोशल मीडिया ग्रुप्स के जरिये बढ़ रहा पारस्परिक व्यवसाय आसान हुई सुदूर क्षेत्रों में प्रवासित साधर्मिकों की धार्मिक-सामाजिक सार-संभाल
राजस्थान के चूरू जिले में सरदारशहर के निकट जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञ के समाधि स्थल के भव्य निर्माण का सुअवसर तेरापंथी महासभा को प्राप्त हुआ। 13 दिसंबर 2013 को परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण के पावन सान्रिध्य में लोकार्पित इस समाधि स्थल को आचार्यप्रवर ने 'अध्यात्म का शांतिपीठ' के रूप में प्रतिष्ठित किया। अपने नाम के अनुरूप यह शांतिपीठ आगंतुकों को असीम शांति का अनुभव कराता है। समाधिस्थल परिसर में बीस वातानुकूलित कमरों से युक्त अतिथिगृह, ध्यानकेंद्र, पुस्तकालय, विक्रयकेंद्र, ऑडिटोरियम, भोजनालय आदि व्यवस्थाएं भी उपलब्ध हैं। इस सुरम्य परिसर में प्रतिवर्ष तेरापंथी महासभा द्वारा आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की पुण्यतिथि (वैशाख कृष्णा एकादशी) पर धम्म जागरणा, चिकित्सा शिविर एवं विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ समाधि स्थल के सुरम्य परिसर में तेरापंथी महासभा द्वारा एक अद्भुत, अविस्मरणीय और अतुलनीय अनुभव प्रदान करने वाला महाप्रज्ञ म्यूजियम भी निर्मित है। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ के जीवन दर्शन को समर्पित इस भव्य म्यूजियम का लोकार्पण 8 मई 2022 को परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण के पावन चरणस्पर्श से हुआ। अपनी विलक्ष्ण विशेषताओं से यह म्यूजियम श्रद्धालुओं व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां आने वाले दर्शकों के मुंह से यही सुनने को मिलता है, ‘अद्भुत!’ ऐसा म्यूजियम पहले कभी भी और कहीं भी नहीं देखा। अध्यात्म के शांतिपीठ में स्थित अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से युक्त यह विश्वस्तरीय म्यूजियम अध्यात्म और विज्ञान का मानों संगम है।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ के मंगलन मंत्रोच्चार से युक्त मोशन सेंसर लोटस, जैन धर्म की प्रमुख बातों को समझाने चाला इंटरेक्टिव वॉल प्रोजेक्शन , आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन चरित्र पर आधारित स्पेशल 180 डिग्री स्क्रीन पर दिखाई जाने वाली रोचक एवं रोमांचक फिल्म, ट्रेकबॉल कालचक्र, रोबोटिक्स, समस्याओं के समाधायक मंत्रों से युक्त टेलीफोन और कार्ड्स, आचार्य महाप्रज्ञ के बचपन व अहिंसा यात्रा पर आधारित प्रोजेक्टिव फ्लिप बुक्स, प्रेरक प्रवचनों से युक्त कियोस्क, आधुनिक तकनीक से प्रेक्षाध्यान का अनुभव , सुसंस्कार प्रदायक जीवन विज्ञान के गेम्स, लेटेस्ट वी.आर. टेक्नोलाजी से युक्त आचार्यश्री महाश्रमण से साक्षात् संवाद का सुअवसर, आचार्य श्री महाश्रमण के जीवन दर्शन व अहिंसा यात्रा पर आधारित मोशन सेंसर एवं कियोस्क, लेजर हार्प टेक्नोलाजी के माध्यम से आध्यात्मिक गीतों के श्रवण का आनंद आदि इस म्यूजियम के प्रमुख आकर्षण हैं। संक्षेप में इतना ही कहा जा सकता है कि रेतीले धोरों पर स्थित यह म्यूजियम किसी आश्चर्य स कम नहीं है।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के जनकल्याणकारी अवदानों के प्रभावक रूप में सुचारू और सुव्यवस्थित संचालन की दृष्टि से एक ऐसे परिसर की परिकल्पना की गई, जिससे धर्मसंघ की विश्वव्यापी पहचान में अभिवृद्धि हो। जहां पहुंचकर न केवल भारतीय लोग, अपितु विदेशी लोग भी जैन धर्म और तेरापंथ को सुगमता और गहराई के साथ समझ सकें तथा उनके अवदानों से लाभान्वित हो सकें।
तेरापंथ विश्व भारती नामक इस प्रस्तावित विशाल परिसर को धर्मसंघ की कल्याण परिषद् ने स्वीकृति प्रदान करते हुए इसे क्रियान्वित करने का महनीय दायित्व जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा को सौंपा। इस अतिमहत्त्वपूर्ण विशाल परिसर का निर्माण भारत की राजधानी दिल्ली में 50 एकड़ भूमि पर किया जाना प्रस्तावित है।
इस विशाल परिसर में तेरापंथ भवन, इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर, तेरापंथ संग्रहालय एवं चित्रदीर्घा, केंद्रीय संस्थाओं के कार्यालय, अंतर्राष्ट्रीय आवासीय शिक्षण संस्थान, अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्र, पुस्तकालय-वाचनालय, साहित्य विक्रय केन्द्र, पंडाल, सामाजिक कार्यक्रम स्थल, सुपर मार्केट आदि का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है।
इस ट्रस्ट में अब तक 100 से अधिक लोगों ने संस्थापक ट्रस्टी बनने की स्वीकृति प्रदान की है। इस ट्रस्ट को आयकर अधिनियम की धारा 80G के अंतर्गत छुट प्राप्त हो चुकी है।
महासभा को अनेक केन्द्रीय संस्थाओं /गतिविधियों की जन्मदात्री संस्था होने का गौरव भी प्राप्त है। तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित होने के इच्छुक मुमुक्षु भाई-बहनों के शिक्षण प्रशिक्षण की व्यवस्था के उद्देश्य से महासभा द्वारा पारमार्थिक शिक्षण संस्था की स्थापना की गई एवं 31 वर्षों तक उसका व्यवस्थित संचालन भी किया गया। जैन विश्व भारती की पृष्ठभूमि के रूप में महासभा के अन्तर्गत जैन विश्व भारती विभाग स्थापित हुआ तथा युवा विभाग के रूप में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् एवं तेरापंथ महिला मंडल की पृष्ठभूमि का निर्माण हुआ। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम की स्थापना महासभा के अंतर्गत हुई। इस प्रकार ये सभी संस्थाएं महासभा से अंकुरित होकर आज तेरापंथ धर्मसंघ की केंद्रीय संस्थाओं के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए हैं।
जैन आगमों का संपादन और प्रकाशन, संघीय साहित्य का प्रकाशन तथा प्रचार प्रसार, जैन विद्या पाठ्यक्रम का संचालन एवं उसकी परीक्षाओं का आयोजन, मेधावी छात्र प्रोत्साहन परियोजना आदि धर्मसंघ की कई महत्त्वपूर्ण और समाजोपयोगी गतिविधियां महासभा के आंगन में प्रसूत, पल्लवित और पुष्पित हुईं। आज वे विभिन्न केन्द्रीय संस्थाओं के अंतर्गत संचालित होती हुई समाज के लिए लाभप्रद बनी हुई हैं।
तेरापंथ समाज के सदस्यों के लिए ही नहीं, संघीय संस्थाओं एवं गतिविधियों के योगक्षेम के लिए भी महासभा सतत सजग है। विभिन्न संघीय संस्थाओं एवं गतिविधियों को महासभा द्वारा अपेक्षानुसार सहयोग दिया जाता रहा है। महासभा द्वारा जैन विश्व भारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय को न केवल लगभग 92,800 वर्गफिट का भूखण्ड समर्पित किया गया, अपितु उसके उपयोग के लिए करीब ₹7 करोड़ की लागत से आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय का भी निर्माण करवाया गया। संस्थान के जैनोलोजी विभाग को भी महासभा द्वारा अपेक्षित आर्थिक सहयोग उपलब्ध करवाया गया। मेधावी छात्र प्रोत्साहन परियोजना के अन्तर्गत महासभा द्वारा 1883 विद्यार्थियों को रु. 3,13,84,475 की छात्रवृत्ति प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त गंगापुर स्थित आचार्य तुलसी अमृत महाविद्यालय के सम्यक् संचालन और फ्यूरेक संस्थान के उपयोगार्थ भी आर्थिक सहयोग प्रदान किया गया।
आधी सदी से भी ज्यादा समय से तेरापंथ धर्मसंघ के महनीय आयोजनों के समायोजन का सौभाग्य महासभा को प्राप्त होता रहा है। तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना के दो सौ वर्षों की संपन्नता के उपलक्ष्य में सन् 1960 में तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह के भव्य एवं गरिमामय आयोजन से प्रारंभ हुआ महासभा का यह सुनहरा सफर धर्मसंघ की उन्नति और प्रभावना का परचम फहराता रहा है। धर्मसंघ के विविध महत्वपूर्ण प्रसंगों को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल एवं गरिमापूर्ण रूप में समायोजित करने का सौभाग्य महासभा को प्राप्त हुआ।
इन अवसरों पर महासभा द्वारा संघ विकास एवं संघ प्रभावना तथा लोक कल्याण के अनेकानेक आध्यात्मिक एवं सामाजिक उपक्रम आयोजित किए गए। इन प्रसंगों पर महासभा द्वारा प्रकाशित अनेक ग्रंथ और शताधिक अन्य पुस्तकें धर्मसंघ की अमूल्य धरोहर हैं। महासभा के प्रयास से भारत सरकार ने आचार्य भिक्षु निर्वाण द्विशताब्दी के परिपेक्ष्य में डाक टिकट और आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में ₹5 के सिक्के जारी किए। इसके साथ बीकानेर से चेन्नई जाने वाली एक रेल का नाम भी भारत सरकार द्वारा अणुव्रत एक्सप्रेस किया गया।
महासभा द्वारा आयोजित धर्मसंघ के अतिमहत्त्वपूर्ण आयोजन
तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह : तेरापंथ की स्थापना के 200 वर्षों की परिसम्पन्नता के उपलक्ष्य में
धवल समारोह : आचार्यश्री तुलसी के आचार्यकाल के 25 वर्षों की परिसम्पन्नता के संदर्भ में
कालजयी महर्षि अभिवंदना समारोह : आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा तेरापंथ की आचार्य परम्परा में सर्वाधिक आयुष्य एवं संयम पर्याय प्राप्ति के नव कीर्तिमान स्थापना के उपलक्ष्य में
भिक्षु निर्वाण द्विशताब्दी समारोह : आचार्यश्री भिक्षु के महाप्रयाण के 200 वर्षों की परिसम्पन्नता के उपलक्ष्य में
आचार्य महाश्रमण अमृत महोत्सव : आचार्यश्री महाश्रमणजी के जीवन के 50 वर्षों की सम्पन्नता के संदर्भ में
आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह : आचार्यश्री तुलसी के जन्म के 100 वर्षों की सम्पन्नता के उपलक्ष्य में
महाप्रज्ञोस्तु मंगलम् : आचार्यश्री महाप्रज्ञ के जन्म के 100 वर्षों की सम्पन्नता के उपलक्ष्य में
आचार्यश्री भारमल महाप्रयाण द्विशताब्दी समारोह : आचार्यश्री भारमल महाप्रयाण के 200 वर्ष की सम्पन्नता के उपलक्ष में
महासभा को तेरापंथ धर्मसंघ की प्रतिनिधि संस्था के रूप में गौरवपूर्ण प्रतिष्ठा प्राप्त है। तेरापंथ धर्मसंघ का प्रतिनिधित्व करने की दृष्टि से ही प्रसूत हुई महासभा अपने उदयकाल से ही इस दायित्व का निर्वहन बखूबी करती हुई धर्मसंघ की प्रभावना, सुरक्षा व विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है। धर्मसंघ पर जब कभी कठिनाई की स्थितियों ने प्रहार करने की कोशिशें कीं, परम पूज्य आचार्यों के पावन आशीर्वाद से महासभा ने धर्मसंघ की ढाल बनकर अपने कुशल पराक्रम से उन कोशिशों को विफल कर दिया। प्रसंग चाहे बाल दीक्षा प्रतिबंधक बिल का हो या भिक्षावृत्ति निवारण विधेयक का, अग्नि परीक्षा प्रकरण का हो या संथारा प्रतिबंध का, महासभा ने सजगता, सक्रियता और तत्परता के साथ धर्मसंघ का सक्षम प्रतिनिधित्व करते हुए धर्मसंघ की गरिमा को सदैव अक्षुण्ण बनाए रखा। प्राकृतिक आपदाओं आदि के प्रसंगों में भी महासभा ने पीड़ित मानवजाति की सेवा कर तेरापंथ समाज के सामाजिक दायित्व को कुशलतापूर्वक निभाया। इस प्रकार महासभा तेरापंथ धर्मसंघ और संघपति की सेवा में सदैव प्राणप्रण से समर्पित रही है।
प्रत्येक तेरापंथी परिवार की सार-संभाल और योगक्षेम की दृष्टि से महासभा संवाहकों द्वारा गांव-गांव, घर-घर की यात्रा की जा रही है। इस यात्रा के अंतर्गत जिस क्षेत्र में सभा नहीं है, वहां प्रवासित श्रावक समाज से आत्मीय संपर्क साधकर उनकी समस्याओं को समाहित करने और उन्हें संघीय गतिविधियों से सक्रिय रूप से जोड़ने का सघन प्रयास किया जा रहा है। यात्रा के दौरान महासभा संवाहक प्रत्येक तेरापंथी के घर में जाकर उनसे रूबरू होने का प्रयास करते हैं। हर तेरापंथी घर में परम पूज्य आचार्यप्रवर की मनमोहक तस्वीर भी उपहार स्वरूप दी जाती है। महासभा के इस महत्त्वपूर्ण आयाम से सकारात्मक और दूरगामी परिणाम देखने को मिल रहे हैं। महासभा संवाहकों के द्वारा अब तक देश के 18 राज्यों के 547 क्षेत्रों की यात्रा कर 2289 तेरापंथी परिवारों की सार-संभाल की गई है।
28387 किमी यात्रा | 547 यात्रा क्षेत्र | 2289 परिवारों की सार-संभाल |
28 नई सभाओं का गठन | 89 नई उपसभाओं का गठन |
सद्भावना का संप्रसार, नैतिकता का प्रचार -प्रसार और नशामुक्ति अभियान जैसे लोक कल्याणकारी उद्देश्यों के साथ 09 नवम्बर 2014 को भारत की राजधानी दिल्ली से परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के आध्यात्मिक नेतृत्व और पथदर्शन में प्रारंभ हुई 'अहिंसा यात्रा' के प्रचार प्रसार, जनसंपर्क एवं प्रशासनिक कार्यों से संबंधित दायित्वों का निर्वहन महासभा द्वारा किया जा रहा है। इस संदर्भ में महासभा के अंतर्गत अहिंसा यात्रा प्रबंधन समिति गठित रही।
परम पूज्य आचार्यप्रवर की यात्रा के दौरान विभिन्न दायित्वों के क्रियान्वयन हेतु महासभा व देश-विदेश में फैली तेरापंथी सभाओं से जुड़े कार्यकर्ताओं के समूह इस कार्य हेतु अपनी सेवाएं देते हैं। प्रचार-प्रसार की दृष्टि से आधुनिक संसाधनों से युक्त वाहनों का भी उपयोग होता है। ग्रामीण जनता के लिए इन वाहनों के माध्यम से आचार्यप्रवर के व्यक्तित्व व अहिंसा यात्रा पर आधारित डॉक्यूमेंट्री और नशामुक्ति पर आधारित फिल्म का भी प्रसारण किया जाता है। अहिंसा यात्रा से संबंधित विभिन्न प्रचार सामग्री का प्रकाशन एवं वितरण भी महासभा द्वारा किया जाता है।
महासभा आचार्यप्रवर की मार्ग सेवा में माइक, जल, बिजली आदि व्यवस्थाओं के द्वारा भी स्थानीय समितियों का सहयोग करती है तथा आचार्यप्रवर की यात्रा, प्रवास आदि के संदर्भ में स्थानीय व्यवस्था समितियों का समुचित मार्गदर्शन भी करती है।
परम पूज्य आचार्यप्रवर की सेवा में निरंतर शिविर कार्यालय का संचालन महासभा की महत्त्वपूर्ण और प्रमुख गतिविधियों में से एक है। यह कार्यालय आचार्यप्रवर और चतुर्विध धर्मसंघ के बीच संवाद सेतु के रूप में कार्य करता है। आधुनिक सुविधाओं से युक्त वाहन के माध्यम से यह कार्यालय पूज्यप्रवर की यात्रा के दौरान भी अपनी सेवा उपलब्ध करवाता है।
समाज के नैनिहालों को सुसंस्कारी बनाने का महत्त्वर्ण उपक्रम है “संस्कार निर्माण शिविर"। महासभा द्वारा सन् 1997 से आचार्यप्रवर के पावन सान्निध्य में तथा देश विदेश के विभिन्न क्षेत्रों में भी क्षेत्रीय स्तर पर संस्कार निर्माण शिविर का आयोजन किया जाता है। इन शिविरों में आध्यात्मिक खुराक के द्वारा न केवल बालक-बालिकाओं के आंतरिक व्यक्तित्व को परिपुष्ट बनाने का प्रयास किया जाता है, अपितु उच्च स्तरीय प्रशिक्षण के द्वारा उनके बाह्य व्यक्तित्व को भी निखारने का प्रयत्न किया जाता है। अब तक समायोजित 50 से अधिक शिविरों में हजारों बालक-बालिकाओं ने सहभागिता कर ज्ञान व सत्संस्कारों का अर्जन किया है।
अनेकानेक तेरापंथी परिवार विदेशों में प्रवासित हैं। उन परिवारों का तेरापंथ समाज से सम्पर्क निरन्तर बना रहे, उनकी सार-संभाल भी व्यवस्थित रूप में होती रहे और उनकी सेवाओं का लाभ समाज को सदा प्राप्त होता रहे, इस उद्देश्य से महासभा द्वारा ‘तेरापंथ एन.आर.आई. विभाग’ का गठन कर अप्रवासी तेरापंथी लोगों का डेटाबेस बनाया गया है। इस डेटाबेस का उपयोग प्रकोष्ठ की उद्देश्य पूर्ति में किया जा रहा है। इस विभाग के अंतर्गत प्रतिवर्ष पूज्यप्रवर के सान्निध्य में तेरापंथी अप्रवासी भारतीय लोगों का एक सम्मेलन भी आयोजित किया जाता है।
तेरापंथ समाज की प्रतिभाओं को उजागर करने एवं उन्हें देश-दुनिया में अपनी कला प्रदर्शन के लिए मंच उपलब्ध कराने के उद्देश्य से महासभा के अंतर्गत इस विभाग का गठन किया गया है। इस विभाग के अंतर्गत देशभर में विविध कलात्मक एवं सांस्कृतिक उपक्रम समायोजित किए जाएंगे, जिनमें विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाओं को तराशने के साथ-साथ उन्हें अपनी कला के प्रदर्शन का अवसर भी प्रदान किया जाएगा। विभिन्न कलाओं में निपुण लोगों का एक डेटाबेस भी तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है।
नॉन तेरापंथी परिवार में विवाहित तेरापंथी परिवार की बेटियों को तेरापंथ धर्मसंघ से जोड़े रखने के उद्देश्य से महासभा द्वारा ‘बेटी तेरापंथ की’ प्रकल्प का शुभारम्भ किया गया है। स्नेह, संस्कार और समन्वय इस त्रिआयामी ध्येय के साथ गतिमान इस प्रकल्प के अंतर्गत तेरापंथी बेटियों के डेटाबेस का निर्माण किया जा रहा है, ताकि उन्हें तेरापंथ धर्मसंघ के संवादों, सूचनाओं से अवगत रखा जा सके तथा समय-समय पर उनकी सार-संभाल भी की जा सके। इसके साथ उन बेटियों के लिए प्रतिवर्ष परम पूज्य आचार्यप्रवर के पावन सान्निध्य में एक सम्मेलन भी रखा जाना प्रस्तावित है। इस सम्मेलन में वे अपने जीवनसाथी के साथ संभागी बन सकती हैं।
वर्तमान में सामाजिक एवं पारिवारिक परिस्थितियों में वरिष्ठ नागरिकों के लिए अपनी चित्त समाधि रख पाना अपने आप में चुनौतीपूर्ण कार्य है। महासभा 70 से अधिक वय प्राप्त तेरापंथी श्रावक-श्राविकाओं को उनकी अपेक्षानुसार आध्यात्मिक, सामाजिक व चिकित्सकीय सहयोग तथा प्रशिक्षण प्रदान करने के लक्ष्य के साथ ‘तेरापंथ वरिष्ठ नागरिक विभाग’ प्रारंभ करने जा रही है। इस विभाग के अंतर्गत स्थानीय तेरापंथी सभाओं के माध्यम से समाज के वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य, जीवनशैली, पारिवारिक सामंजस्य आदि विषयों से संबंधित प्रशिक्षण उपलब्ध करवाने के साथ उन्हें समुचित सहयोग देने का प्रयास भी किया जा सकेगा।
भारत सरकार द्वारा जैन समाज को प्रदत्त ‘अल्पसंख्यक’ (माइनॉरिटी) के दर्जे के अंतर्गत तेरापंथ समाज को मिलने वाले फायदों की जानकारी समाज तक पहुंचाने एवं उनसे लाभान्वित करने के उद्देश्य से महासभा के अंतर्गत ‘जैन माइनॉरिटी विभाग’ की स्थापना की गई है। इसके अंतर्गत जैन तेरापंथ कार्ड धारकों के लिए एक सर्टिफिकेट भी जारी किया जा रहा है। अब तक 20000 लोगों को यह सर्टिफिकेट प्रेषित किया जा चुका है। जिसके उपयोग से सैंकड़ों लोगों को शैक्षिक, आर्थिक आदि लाभ प्राप्त हुए हैं।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण और संवर्धन की दृष्टि से महासभा के अंतर्गत स्मारक सुरक्षा प्रकोष्ठ गठित है। स्मारक सुरक्षा समिति के विलय के पश्चात् महासभा का यह प्रकोष्ठ धर्मसंघ की ऐतिहासिक धरोहरों यथा-तेरापंथ स्थापना स्थल, आचार्यों के जन्म, दीक्षा एवं महाप्रयाण स्थल आदि से संबंधित संस्थाओं/ट्रस्ट के मार्गदर्शन एवं नीति नियमन का दायित्व बखूबी निभा रहा है।
तेरापंथ धर्मसंघ एवं सर्व समाज की दूरगामी अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए महासभा द्वारा निर्धारित अर्हता प्राप्त उन क्षेत्रों में तेरापंथ भवन निर्माण का लक्ष्य रखा गया, जहां अभी तक पर्याप्त तेरापंथी परिवारों की संख्या के पश्चात् भी तेरापंथ भवन नहीं है। इस योजना के अंतर्गत अर्हता प्राप्त क्षेत्रों में तेरापंथ भवन निर्माण हेतु महासभा की प्रेरणा से समाज के उदारमना महानुभावों द्वारा सहयोग राशि महासभा द्वारा प्रदान की जाती है। संघीय एवं सामाजिक दोनों दृष्टियों से यह काफी उपयोगी उपक्रम है। अब तक इस योजना के अंतर्गत 13 क्षेत्रों में तेरापंथ भवनों का निर्माण हो चुका है तथा तीन क्षेत्रों में निर्माण कार्य जारी है।
भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रख्यात कोलकाता के केन्द्र स्थल में 70 से अधिक वर्षों से महासभा के मुख्यालय के रूप में प्रतिष्ठित महासभा भवन सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक गतिविधियों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। ब्रेबोर्न रोड पर पोर्तुगीज चर्च के पास लगभग 28 कट्टे जमीन में निर्मित तीन मंजिला महासभा भवन दूर से ही आस्थाशील श्रावक समाज को आकर्षित करता है। भवन में निर्मित प्रधान कार्यालय, विशाल प्रवचन सभागार, उपासना कक्ष, भिक्षु ग्रंथागार आदि इसके वैशिष्ट्य एवं उपादेयता को कई गुना बढ़ाए हुए हैं। अब तक चारित्रात्माओं के 26 चतुर्मास महासभा भवन में हो चुके हैं। सर्वप्रथम गुरुदेव तुलसी ने सन् 1959 का चातुर्मास इस भवन में किया था। उस चातुर्मास की संपूर्ण व्यवस्थाओं के दायित्व का निर्वहन का सौभाग्य भी महासभा को प्राप्त हुआ। यह भवन कोलकाता तेरापंथ समाज की विभिन्न धार्मिक-सामाजिक गतिविधियों के मुख्य केन्द्र के रूप में भी प्रतिष्ठित रहा है। कई दशकों से यहां जैन श्वेताम्बर तेरापंथी विद्यालय भी संचालित है, जो किसी समय अपनी विशिष्ट पहचान लिए हुए था। 17 जून 2017 को परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी का पदार्पण और प्रवास महासभा भवन में हुआ। आचार्यश्री ने उस दिन महासभा को ‘संस्था शिरोमणि’ का गौरवपूर्ण अलंकरण प्रदान किया।
- 60 वर्ष पूर्व गुरुदेव तुलसी की चतुर्मास भूमि
- कोलकाता तेरापंथ समाज का प्रतिष्ठित स्थान
- 70 वर्षों से तेरापंथी महासभा का मुख्य केन्द्र
- जैन श्वेताम्बर तेरापंथ विद्यालय का संचालन स्थल
साहित्य प्रकाशन महासभा की महत्त्वपूर्ण गतिविधियों में से एक रही है। एक सदी पूर्व सन् 1917 में ‘जैन तत्व प्रकाश’ नामक तेरापंथ धर्मसंघ की प्रथम पुस्तिका के प्रकाशन के साथ शुरू हुई महासभा की साहित्य प्रकाशन यात्रा धर्मसंघ के मानव कल्याणकारी अवदानों के प्रचार-प्रसार के साथ संघीय प्रभावना में भी योगभूत रही। ‘तेरापंथ इतिहास’ के सात खण्ड, आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रंथ, आचार्य तुलसी स्मृति ग्रंथ, आचार्य तुलसी अभिनन्दन ग्रंथ, ज्योतिचरण ग्रंथ (आचार्य महाश्रमण अभिनन्दन ग्रंथ) तथा 108 खंडों में प्रकाशित आचार्य तुलसी वाङ्मय महासभा की इस साहित्यिक यात्रा की गौरवशाली उपलब्धियां हैं। महासभा द्वारा करीब 311 शीर्षकों से प्रकाशित पुस्तकें संघ की अमूल्य धरोहर हैं। स्वयं द्वारा संचालित ज्ञानशाला, उपासक श्रेणी आदि प्रवृत्तियों से संबंधित साहित्य का प्रकाशन भी महासभा स्वयं करती है। महासभा द्वारा प्रकाशित साहित्य कोलकाता स्थित महासभा मुख्यालय तथा जैन विश्व भारती के साहित्य विक्रय केन्द्र पर उपलब्ध है।
महासभा के गौरवपूर्ण प्रकाशन
धर्मसंघ की 300 से अधिक पुस्तकें
अनेक जैन आगमों के संपादित, व्याख्यायित और अनूदित रूप
आचार्यश्री भिक्षु एवं आचार्यश्री तुलसी के स्मृति ग्रंथ
आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाश्रमण के अभिनंदन ग्रंथ
तुलसी वाङ्मय के 108 खंड
‘तेरापंथ का इतिहास’ के सात खंड
श्रावक संदेशिका
कोलकाता स्थित महासभा भवन में स्थापित भिक्षु ग्रंथागार में विभिन्न धर्म एवं दर्शन से संबंधित लगभग 10,000 से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। अनेक प्राचीन एवं दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथ भी भिक्षु ग्रंथागार में संग्रहित हैं, जिनका संरक्षण इस ग्रंथागार में किया जाता है। यह ग्रंथागार शोध, अध्ययन, ऐतिहासिक, अन्वेषण आदि अनेक दृष्टियों से अपना विशेष महत्व रखता है। भिक्षु ग्रंथागार के अंतर्गत तत्त्वज्ञान, प्राकृत भाषा आदि से संबंधित विभिन्न कक्षाओं का संचालन भी किया जाता है।
तेरापंथ धर्मसंघ के ‘गजट’ के रूप में प्रतिष्ठित धर्मसंघ की सर्वाधिक लोकप्रिय साप्ताहिक पत्रिका विज्ञप्ति के स्वर्णजयंती वर्ष के प्रारम्भ के साथ अर्थात् जनवरी 2018 से प्रकाशन का गौरवपूर्ण दायित्व महासभा को प्राप्त हुआ। जनवरी 1969 से आरम्भ हुई ‘विज्ञप्ति’ के पचासवें वर्ष का प्रथम अंक तेरापंथी महासभा द्वारा प्रकाशित हुआ। इससे पूर्व आदर्श साहित्य संघ ने निरंतर 49 वर्षों तक इस साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन किया। इस पत्रिका में मुख्य रूप से आचार्यप्रवर के आसपास के संवादों, प्रवचनों, कार्यक्रमों, चतुर्विध धर्मसंघ के लिए आचार्यप्रवर के निर्देशों, नवीन घोषणाओं आदि का प्रकाशन किया जाता है।
सन् 1940 में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा तेरापंथ धर्मसंघ के संवादों के संप्रेषण हेतु सन् 1940 से ‘विवरण पत्रिका’ के रूप में तेरापंथ धर्मसंघ की प्रथम पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। यह पत्रिका सन् 1948 से ‘जैन भारती’ के रूप में परिवर्तित हो गई। साप्ताहिक-मासिक पत्रिका के रूप में यात्रा करती हुई जैन भारती सन् 1989 से निरन्तर मासिक पत्रिका के रूप में प्रकाशित होने लगी। जैन दर्शन से संबंधित उच्च कोटि की सामग्री से युक्त यह जैन समाज की प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका है। समय-समय पर विभिन्न विषयों से संबंधित विशेषांक जैन भारती के इतिहास के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं।
महासभा एवं सभाओं के मध्य संवाद सेतु के रूप में महासभा के मासिक परिपत्र ‘अभ्युदय’ में महासभा एवं सभाओं द्वारा संचालित गतिविधियों की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की जाती है। महासभा द्वारा सभाओं को समय-समय पर दिशा-निर्देश देने तथा सभाओं के रचनात्मक कार्यों की अवगति प्राप्त करने का यह एक अच्छा माध्यम है। वर्तमान में डिजिटल रूप में प्रकाशित होने वाला यह परिपत्र सभी तेरापंथी सभाओं एवं उपसभाओं को प्रेषित किया जाता है।
तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावक-श्राविकाओं की सेवाओं, समर्पण, त्याग-तपस्या, श्रद्धा-भक्ति, उज्जवल चरित्र आदि विशिष्टताओं का अंकन करते हुए पूज्यप्रवर समय-समय पर उन्हें विशिष्ट संबोधनों से संबोधित करते रहे हैं। ऐसे श्रावक-श्राविकाओं के सम्मान की दृष्टि से महासभा सन् 1989 से प्रतिवर्ष मर्यादा महोत्सव के अवसर पर पूज्यप्रवर के पावन सान्निध्य में ‘संबोधन अलंकरण समारोह’ का आयोजन करती रही है। समाज के 2773 श्रावक-श्राविकाओं को विशिष्ट संबोधनों से संबोधित होने का गौरव प्राप्त है।
तेरापंथ समाज का सर्वोच्च अलंकरण-सम्मान है ‘समाज भूषण’ । यह सम्मान महासभा द्वारा पूज्यप्रवर की दृष्टि के अनुरूप संघ एवं समाज की धार्मिक-सामाजिक-सांस्कृतिक श्रीवृद्धि में विशिष्ट योगदान देने वाले विरल विशेषताओं और क्षमताओं के धनी व्यक्तित्व को प्रदान किया जाता है। महासभा के 100 से अधिक वर्षों के इतिहास में अब तक तेरापंथ समाज के 21 विशिष्ट श्रावकों को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
तेरापंथ विशिष्ट प्रतिभा पुरस्कार
जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा द्वारा सन 2022 से तेरापंथ विशिष्ट प्रतिभा पुरस्कार का प्रारंभ किया जा रहा है। यह पुरस्कार परम पूज्य आचार्यप्रवर के पावन सानिध्य में प्रतिवर्ष ऐसे तेरापंथी व्यक्तित्व को समर्पित किया जाएगा, जिसने अपनी अर्हता, प्रतिभा एवं कौशल से समाज व राष्ट्र में विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त की हो तथा धर्मसंघ को अपनी विशिष्ट सेवाएं प्रदान की हों।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा सन 2002 से प्रतिवर्ष धर्मसंघ एवं समाज को विशिष्ट सेवाएं देने वाले व्यक्तित्व को 'आचार्य तुलसी समाज सेवा पुरस्कार' से सम्मानित किया जाता है। इस पुरस्कार के अंतर्गत एक लाख रुपये की राशि एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार हेतु एक चयन समिति का गठन किया जाता है, जो पुरस्कार हेतु प्राप्त प्रविष्टियों पर विचार विमर्श कर निर्णय करती है।
निर्धारित मानदण्डों के आधार पर कार्य संचालन करने वाली तेरापंथी सभाओं को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से विभिन्न पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। इस संदर्भ में क्षेत्र में प्रवासित तेरापंथी परिवारों की संख्या के आधार पर सभाओं के तीन स्तर हैं-बृहत्, मध्यम और लघु। तीनों स्तरों के अंतर्गत प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाली सभाओं को प्रतिवर्ष परम पूज्य आचार्यप्रवर के पावन सान्निध्य में क्रमशः श्रेष्ठ, उत्तम और विशिष्ट सभा के रूप में पुरस्कृत किया जाता है।
महासभा को उसकी कार्यप्रणाली में नियमबद्धता, सुव्यवस्था, गुणवत्ता आदि मानकों के आधार पर ISO 9001 : 2015 प्रमाणन प्राप्त है। किसी सामाजिक संगठन के लिए यह प्रमाणन अपने आप में उसकी कार्यप्रणाली की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करता है।
महासभा को आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80 जी के अंतर्गत छूट प्राप्त है। कोई भी अनुदानदाता महासभा को अनुदान प्रदान कर अपने आयकर में इस छूट का लाभ प्राप्त कर सकता है।
महासभा द्वारा अनेक गतिविधियां समाज के व्यापक हित में संचालित हैं, अत: कोई भी कंपनी महासभा की उन गतिविधियों में अपना अनुदान देकर सी.एस.आर. से संबंधित अपने दायित्व का निर्वहन कर सकती है।
तेरापंथ धर्मसंघ व समाज के हित के लिए संचालित महासभा की बहुपयोगी और महत्त्वपूर्ण विविध गतिविधियों में प्रत्येक तेरापंथी व्यक्ति का योगदान हो, इस दृष्टि से ‘महासभा अक्षय निधि कोष’ स्थापित किया गया है। इस कोष में अपना योगदान देकर कोई भी तेरापंथी व्यक्ति समाजोत्थान के महनीय कार्य में अपनी सहभागिता दर्ज करा सकता है। इस योजना की सहयोग राशि प्रति व्यक्ति रु. 1,00,000 निर्धारित है। अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि, अपने जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ आदि अवसरों को निमित्त बनाकर प्रतिवर्ष अनुदान देना अनुदानदाता को आत्मतोष की अनुभूति कराने वाला बन सकता है। प्रत्येक अनुदानदाता को महासभा द्वारा अनुमोदना पत्र प्रेषित किया जाना प्रस्तावित है।
संचार क्रांति के युग में महासभा निरंतर युगधारा के अनुरूप गतिमान है। तेरापंथ धर्मसंघ से संबंधित विभिन्न जानकारियों तथा अपनी विभिन्न गतिविधियों के संदर्भ में महासभा की चार वेबसाइट्स हैं-
www.acharyamahashraman.in आचार्य महाश्रमण के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर आधारित
www.jstmahasabha.org महासभा के बारे में संपूर्ण जानकारी
www.terapanthnetwork.com जैन तेरापंथ कार्ड बनवाने हेतु तेरापंथ नेटवर्क की वेबसाइट
Terapanth Mobile App. महासभा की ‘तेरापंथ एप’ के अंतर्गत आध्यात्मिक व संघीय जानकारियों को प्रमुखता दी गई है। इस के फीचर्स इस प्रकार हैं- News, Magazines, Books, Video & Pravachan, Songs, Photos, Guru Vandana, Mangal Path, Mantras, Locate, Quiz, Monks, Knowledge Zone, Calendar.