आचार्य श्री महाप्रज्ञ के द्वारा तेरापंथ की आचार्य परम्परा में सर्वाधिक संयम पर्याय और आयुष्य प्राप्ति के नव-इतिहास सृजन के अवसर पर कालजयी महर्षि अभिवंदना समारोह का वृहद् आयोजन 16 फरवरी 2003 को बंबई-कांदिवली में किया गया। इस महनीय कार्यक्रम को आयोजित करने का सौभाग्य महासभा को प्राप्त हुआ। महासभा की ओर से अनेक वरिष्ठजनों द्वारा हस्ताक्षरित बैनर आचार्यप्रवर को भेंट किया गया। इस अवसर पर ‘अभ्युदय’ का विशेषांक एवं जैन भारती का विशेष अंक प्रकाशित किया गया।
तेरापंथ के आद्यप्रणेता आचार्य भिक्षु के निर्वाण की द्विशताब्दी समारोह के वर्षव्यापी कार्यक्रम के आयोजन पक्ष, साहित्य प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार का दायित्व महासभा को प्रदान किया गया। इसका मुख्य समारोह पूज्य प्रवर की सन्निधि में दिनांक 8 सितम्बर 2003 को सूरत में आयोजित हुआ। इस अवसर पर विशेष रूप से तैयार किये फोल्डर एवं बैनर का लोकार्पण हुआ।
सिरियारी चातुर्मास के प्रारंभिक चरण में आयोजन पक्ष का दायित्व भी महासभा द्वारा निर्वहन किया गया। इस क्रम में युगप्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के ससंघ चातुर्मासिक प्रवेश के अवसर पर 28 जून को भव्य स्वागत समारोह आयोजित किया गया।
भिक्षु निर्वाण द्विशताब्दी के परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार द्वारा ‘आचार्य भिक्षु’ डाक टिकट रु. 5/- मूल्य का जारी किया गया। यह समाज एवं संघ के लिए विशेष गौरव की बात है। महासभा द्वारा प्रसारण हेतु 3 लाख डाक टिकटें क्रय की गईं एवं देश भर में उनको प्रसारित किया गया।
निर्वाण द्विशताब्दी के मुख्य आयोजन के अवसर पर महासभा द्वारा आचार्य भिक्षु पर डाक्युमेंट्री फिल्म ‘ज्योतिर्मय’ तैयार कराई गई जिसका प्रदर्शन सिरियारी में विशाल परिषद के मध्य किया गया एवं मित्र परिषद द्वारा संचालित प्रेरणा प्राथेय में संस्कार चैनल के माध्यम से व्यापक रूप से प्रसारित किया गया।
महासभा के गौरवशाली इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा अहिंसा यात्रा में सहभागिता के द्वारा। 16 मई से 5 जून 2004 तक 21 दिवसीय रास्ते की सेवा में महासभा के वर्तमान एवं पूर्व पदाधिकारी, महासभा की टीम के सदस्य, वरिष्ठ कार्यकर्तागण एवं परिवारजन सम्मिलित हुए।
महासभा के अंतर्गत हजारीमल श्यामसुखा चेरिटेबल ट्रस्ट के संचालाक्त्व में एक साहित्य विक्रय केंद्र 2003 में प्रारंभ किया गया।
सुनामी के नाम से आए समुद्री भूकंप में आपदाग्रस्त विशेषतः दक्षिण भारत के लोगों की सहायता हेतु तेरापंथ समाज की ओर से रु. 51 लाख की सहयोग राशि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष में अनुदानस्वरूप प्रदान की गई। इसका नियोजन महासभा एवं जय तुलसी फाउन्डेशन द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
तेरापंथ विकास परिषद के वार्षिक अधिवेशन (2004) में हुए चिंतन के अनुसार महासभा द्वारा तीन वर्षों के लिए आचार्यश्री तुलसी अमृत महाविद्यालय, गंगापुर के सम्यक संचालन के लिए सहभागिता का दायित्व लिया गया।
फ्युरेक संसथान (FUREC: Foundation of Unity of Religious and Enlightened Citizenship) के संचालन में सहयोग हेतु महासभा को सन् 2005 में दायित्व प्रदान किया गया। महासभा इस कार्य में संलग्न है।
भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के माध्यमिक एवं उच्चतर विभाग के अंतर्गत कॉपीराइट कार्यालय के द्वारा महासभा के लोगो के कॉपीराइट के पंजीकरण हेतु स्वीकृति पत्र प्राप्त हो गया है।
यह भी संयोग ही था कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा का निर्माण और युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी का जन्म लगभग एक साथ हुआ। तेरापंथ के अभ्युदय में दोनों का ऐतिहासिक योगदान रहा। विकास का बीजवपन पूज्य कालुगणी के शासन काल में हो चुका था, किन्तु उसका पल्लवन आचार्य तुलसी के शासनकाल में हुआ।
तेरापंथ के दशमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञ के शासनकाल में महासभा की छवि दूरदर्शी सोच व प्रगतिमूलक उपक्रमों की देन वाली बनी। महासभा की अपनी कार्यप्रणाली, सुव्यवस्थित नेटवर्क व कार्य संपादन की कुशलता के आधार पर इसे प्रतिष्ठित आईएसओ 9001:2000 प्रमाणपत्र प्राप्त हो चुका है।
संघ की शीर्षस्थ संस्था के रूप में कार्य करते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा ने गौरवमय इतिहास निर्मित किया है। युग के अनुरूप समय-समय पर महासभा के पदाधिकारियों ने अनेक प्रवृत्तियों की शुरुआत की और समय के साथ वे कृतकृत्य कर दी गईं। कई प्रवृत्तियों का संपादन बहुत ही योजनाबद्ध, विधिवत एवं सुव्यवस्थित चला।
3, Portuguese Church Street, Kolkata - 700001
Phone: (033) 2235 7956, (033) 2234 3598
WhatsApp: +91 7044447777
Email: info@jstmahasabha.org